स्वर एवं व्यंजन
के भेद
अभी तक हमने पढ़ा कि स्वर ओर व्यंजन कौन कौन
से होते है । अब हमें यह जानना है कि कोइ भी शब्द का यदि हम उच्चारण करते या लिखते है
जो उसमे स्वर एंव व्यंजन दोनो का प्रयोग आवश्यक होता है। स्वर और व्यंजन के भेदो
का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात ही हम पूर्ण अक्षर
ज्ञान प्राप्त कर सकते है इसलिये हमे अब स्वरों एंव व्यंजनों के भेद उनकी मान्नाएँ
एंव उनका किस प्रकार प्रयोग किया जाता है, यह जानना आवश्यक है। बिना स्वर की सहायता
के कोई भी व्यंजन पूर्ण नही होता है।
स्वर
के तीन भेद होते है, जो निम्नलिखित हैः-
१. हस्व
– जिन स्वरों के बोलने में थोडा समय लगता है वे हस्व स्वर कहलाता है ।
जैसेः– अ, इ,
उ, ऋ
२. दीर्घ – जिन स्वरों के उच्चारण में हस्व स्वर से दुगना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाता है।
२. दीर्घ – जिन स्वरों के उच्चारण में हस्व स्वर से दुगना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाता है।
जैसेः– आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
३. प्लुत – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते है।
जैसेः– ओ३म् , हे कृष्णा३। किन्तु आजकल (३) का प्रयोग लिखाई में नही किया
जाता।
३. प्लुत – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते है।
व्यंजन अपने
आप में अधुरे होते है, जब उसमें स्वर मिलायें जाते है तब ही पूर्णता प्राप्त करते है
।जेसे उदाहरण के लिए – यह क् अधुरा है जब इसमें अ मिलाया जायेगा क् + अ = क तब यह पूर्ण रुप से क बन जायेगा इसी
प्रकार सारे व्यंजन स्वर से मिलने पर पूर्णता प्राप्त करते है – अतः स्वरों की सहायता
लेकर ही व्यंजन बनता है ।
व्यंजन
के भेद निम्नलिखित हैं–
१. स्पर्श व्यंजन
क वर्ग
- क ख ग घ ङ
च वर्ग
- च छ ज झ ञ
ट वर्ग
– ट ठ ड ढ ण
त वर्ग
– त थ द ध न
प वर्ग
– प फ ब भ म
२. अन्तस्थ
व्यंजन
य र ल व
३. ऊष्म
व्यंजन
श ष स ह
स्पर्श व्यंजन
– ‘क’ से ‘म’ तक २५ वर्ण मुख के विभिन्न भागों
में जिह्वा के स्पर्श से बोले जाते है । इसलिए इन्हे स्पर्श व्यंजन कहते है ।
अन्तस्थ व्यंजन-
‘य,र,ल,व’- ये चार ऐसे वर्ण हें, जिनके अन्दर
स्वर छिपे है, अतः इन्हें अन्तस्थ व्यंजन कहते
है ।
ऊष्म व्यंजन – ‘श, ष, स’ – इन चार वर्णों के उच्चारण में मुख
से विशेष प्रकार की गर्म (ऊष्म) वायु निकलती है, इसलिए इन्हें ऊष्म व्यंजन कहते है
। इनके उच्चारण में श्वास की प्रबलता रहती
है ।
अयोगवाह – अनुसार
(ं) और विसर्ग (ः) को अयोगवाह कहते है।
अनुस्वार - चंचल, मंगल, विसर्ग – प्रातः अतः
अनुनासिक
– चन्द्रबिन्दु (ँ) । अतिरिक्त
– ड़, ढ़