स्वरों की मात्राएँ
जिस प्रकार
हमने स्वर और व्यंजन के भेद समझे उसी प्रकार अब हम स्वरों की मात्राएँ समझेंगे। जिस
प्रकार स्वर के बिना व्यंजन अधुरा है, ठीक उसी प्रकार मात्राओं के बिना शब्द अधूरा
है। पूर्ण शब्द बनाने के लिए स्वर एंव उसकी मात्राएँ दोनों का होना आवश्यक है।
जब स्वरों
का प्रयोग व्यंजनों के साथ मिल कर किया जाता है, तब उनकी मात्राएँ ही उनके साथ लगती
हैं। हिन्दी में ‘अ’ वर्ण की कोई मात्रा नही होती । ‘अ’ वर्ण सब व्यंजनों में पहले
होता है। बिना ‘अ’ से रहित व्यंजन इस प्रकार लिखे जाते हैं क् , ख् , ग् आदि। ‘अ’ से युक्त व्यंजन इस प्रकार
लिखे जाते हैं – क, ख , ग आदि।
क्रम स्वर
बिना
स्वर स्वर युक्त शब्द
के व्यंजन व्यंजनों का रुप
१.
अ च् + अ च चल
२.
आ च् + आ चा चाचा
३.
इ
च् + इ चि चिन्ह
४.
ई च्
+ ई ची चीख
५.
उ च्
+ उ चु चुप
६.
ऊ च्
+ ऊ चू चूजा
७.
ॠ क् + ऋ कृ कृपा
८.
ए
च्
+ ए चे चेला
९.
ऐ च्
+ ऐ चै चैन
१०.
ओ च्
+ ओ चो चोर
११.
औ च्
+ औ चौ चौराहा
स्वरों के उच्चारण
स्वरों के उच्चारण दो प्रकार से
होते हैः-
१.
केवल मुख से – इन्हें निरनुनासिक
कहते हैं। जैसे – है , पूछ, इत्यादि ।
२.
मुख व नासिक दोनों से – इन्हें
अनुनासिक कहते हैं। जैसे – हैं, पूँछ, इत्यादि।
अनुस्वार और अनुनासिक
अनुस्वार (ं) का उच्चारण कहते समय
श्वास नाक (नासिका) के द्वारा निकालता है।
जैसे – कंस, हंस, मांग, कंगन, संग
आदि।
अनुनासिक (ँ) का उच्चारण मुख तथा
नासिका दोनों से होता है।