व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक के रुप में प्रयोग
व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग सदा एकवचन मे होता है, परन्तु जब
कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी व्यक्ति विशेष का बोध न कराके उस व्यक्ति के गुण दोषों
वाले व्यक्तियों [अन्य] का बोध कराती है, तब वह संज्ञा व्यक्ति वाचक न रहकर जातिवाचक
संज्ञा बन जाती है । जैसे:–
१.कलियुग में हरिश्चन्द्रों की कमी नही है ।
यहाँ ‘हरिश्चन्द्र’ व्यक्तिवाचक संज्ञा उसके ‘सत्य’ और ‘निष्ठा’
के गुण को प्रगट करने से जातिवाचक संज्ञा बनी ।
२.हमें भारत में जयचन्द्रों पर कडी नजर रखनी चाहिये ।
यहाँ ‘जयचन्द’ शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा होते हुए भी उसके ‘विश्वासघात’
गुण को प्रकट करने के कारण अन्य व्यक्तियों का बोध कराती है ।अत: यह जातिवाचक संज्ञा
है ।
जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिवाचक के रुप मे प्रयोग
जब कोई जातिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति के लिये प्रयुक्त हो,
तब वह जातिवाचक संज्ञा होते हुए भी व्यक्तिवाचक संज्ञा बन जाती है । जैसे:–
१. पंडितजी देश के लिये कई बार जेल गए ।
२. गाँधीजी ने देश के लिए अपना तन–मन–धन लगा दिया ।
यहाँ ‘पंडितजी ‘और ‘गाँधीजी ‘शब्द जातिवाचक होते हुए भी व्यक्ति
विशेष अर्थात् पंडित जवाहरलाल नेहरु और महात्मा गाँधी के लिये प्रयुक्त हुए है ।अतः
यहाँ ये दोनों शब्द व्यक्तिवाचक हो गए है ।
नोट :–
१. जब कभी ‘द्रव्यवाचक ‘संज्ञा शब्द बहुवचन के रुप में द्रव्य
के प्रकारों का बोध कराते है, तब वे जातिवाचक संज्ञा बन जाते है । जैसे – यह फर्नीचर
कई प्रकार की लकडियों से बना है ।
२.जब कभी भाववाचक संज्ञा शब्द बहुवचन में प्रयुक्त होते है, तब
वे जातिवाचक संज्ञा शब्द बन जाते है । जैसे – क)
बुराइयों से बचो । ख) हमारी दूरियाँ
बढ़ती जा रही है ।