करण कारक और अपादान कारक में अन्तर
दोनों कारकों का विभक्ति चिन्ह ‘से’ है । पर दोनों के स्वरुप में
अन्तर है ।
जहाँ साधन के अर्थ में से, के द्वारा का प्रयोग हो वहाँ करण कारक
होता है ।
जैसे - सीता कलम से लिखती
है । (के द्वारा)
जहाँ एक वस्तु का दुसरी वस्तु से अलग होना पाया जाए वहाँ अपादान
कारक होता है ।
जैसे - बालक साइकिल से गिर पड़ा (से, अलग)
कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अन्तर
दोनों कारकों में ‘को’ परसर्ग का प्रयोग होने पर भी दोनों में
अन्तर है ।
वह शब्द जिस पर कर्ता द्वारा किए गए व्यापार क्रिया का फल पड़ता
है, कर्म कारक कहलाता है । जैसे –
(क) राम ने श्याम को बुलाया । (यहाँ ‘को’ परसर्ग का फल श्याम पर
पड़ता है ।)
(ख) राकेश स्कूल (को) गया । (यहाँ को न होते हुए भी कर्ता राकेश
के व्यापार क्रिया का फल स्कूल पर पड़ रहा है ।
सम्प्रदान में देने या उपकार करने का भाव मुख्य होता है । अत:
देने या उपकार करने की क्रिया में सम्प्रदान कारक का बोध कराएगा । जैसे –
(क) मालिक ने नौकर को धन दिया ।
यहाँ देने का भाव सम्प्रदान कारक को प्रकट कर रहा है ।
(ख) पिता पुत्र के लिए पुस्तक लाया ।
यहाँ के लिए विभक्ति चिन्ह उपकार की और संकेत करता है ।