क्रिया
नीचे लिखे वाक्यों को ध्यान से पढिए –
(१) जाओ । (२) वह घर गया
।
उपर्युक्त वाक्यों मे
‘जाओ’ और ‘गया’ ऐसे शब्द हैं जिनसे किसी काम के होना या करने का बोध हो रहा है; साथ
ही इनके बिना वाक्य में जो कुछ कहा गया है, वह स्पष्ट नही होता । इस बात को हम यों
भी कह सकते है कि इनके बिना वाक्य सार्थक ही नही होते । व्याकरण में इस प्रकार के शब्द
क्रिया कहलाते है ।
जिन पदों से किसी कार्य का करना या होना पाया जाये, उन्हें क्रिया
कहते हैं ।
जैसे –
१.मोहन पढ़ रहा है
२. सोहन खेलता है
३. वह खाना खा रहा है ।
इन वाक्यों में ‘पढ़ रहा है’, ‘खेलता है’ और ‘खा रहा है’ पदों
से काम के होने या करने का बोध हो रहा है, अतएव ये क्रिया पद कहलाते हैं ।
धातु - क्रिया के मूल रुप को धातु कहते हैं । जैसे – पढ़, सुन,
खा आदि ।
धातु के आगे ‘ना’ प्रत्यय जोड़्ने से क्रिया का सामान्य रुप बन
जाता है ।
क्रिया के भेद
क्रिया के निम्नलिखित दो भेद है -
१.अकर्मक २.
सकर्मक
१.अकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की
आवश्यकता नही होती, अकर्मक क्रिया कहलाती है । इसमें क्रिया का प्रभाव सीधे कर्ता पर
पड़्ता है ।
जैसे
– सोना, उठना, रोना, मरना, गिरना आदि ।
जैसे – वह सोता है । यहाँ सोने का प्रभाव कर्ता ‘वह’ पर है ।
२.सकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की
आवश्यकता होती है, सकर्मक क्रिया कहलाती है । सकर्मक क्रिया कर्म के बिना अपना भाव
पूर्ण रुप से प्रकट नही कर पाती ।
जैसे – सोहन पढ़ रहा है । यहाँ अर्थ में कुछ कमी दिखाई दे रही
है । यदि हम ‘क्या’ द्वारा प्रश्न करें – ‘सोहन क्या पढ़ रहा है? तो उत्तर मिलेगा
– सोहन पत्र/ पुस्तक पढ़ रहा है ।