वाच्य


वाच्य

वाच्य- क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाय कि क्रिया के व्यापार का मुख्य विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है, उसे वाच्य कहते है ।
वाक्य में जिसकी प्रधानता होती है, पुरुष, लिंग और वचन में क्रिया उसी का अनुसरण करती है ।

वाच्य के भेद

१.कर्तृवाच्य- क्रिया का वह रुप, जिससे यह जाना जाय कि वाक्य की क्रिया के विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता है, उसे कर्तृवाच्य कहते है ।
इसमे क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष सदा कर्ता के अनुसार रहते है । इसमें अकर्मक और सकर्मक दोनों क्रियाओं का प्रयोग होता है ।
   अकर्मक क्रिया -          (क) सूर्य निकलता है ।
                                  (ख) बालक हँसता है ।
 सकर्मक क्रया -             (क) बच्चा पुस्तक पढ़ता है ।
                                  (ख) बच्चे पुस्तक पढ़ते है  
                                  (ग) रमेश पत्र लिखता है ।
                                   (घ) रानी गाना गाती है ।
ऊपर क्रिया का मुख्य विषय कर्ता है, अत: उनके लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार है ।

२.कर्मवाच्य – क्रिया का वह रुप जिससे यह जाना जाय कि वाक्य की क्रिया के विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता न होकर कर्म है, उसे कर्मवाच्य कहते है ।
इसमें क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्म के अनुसार होते है ।
विशेष- कर्मवाच्य में केवल सकर्मक क्रियाओं का व्यहार होता है ।
जैसे – बालक से पत्र लिखा गया ।
बालिका से पत्र लिखा गया ।
यहाँ ‘पत्र’ कर्म है और क्रिया का विधान उसके अनुसार है, कर्ता बालक या बालिका के अनुसार नही है
अन्य उदाहरण – बालक से चिट्ठी लिखी जाएगी ।
                       बालक से कहानी पढ़ी जाती है । 

३.भाववाच्य – क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाय कि विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता या कर्म न होकर भाव है, उसे भाववाच्य कहते है । भाववाच्य की क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्लिंग एकवचन में रहती है । इसमें केवल अकर्मक क्रियाओं का ही प्रयोग होता है ।
विशेष- भाववाच्य में प्राय; अशक्तता प्रगट करने के लिए ही क्रिया प्रयुक्त होती है । कभी कभी शक्तता भी प्रगट की जाती है ।
जैसे - (क) मोहन से लेटा नही जाता ।
          (ख) रीता से आज सोया नही गया ।
           (ग) बच्चों से यहाँ खेला नही जाएगा ।
  इस वाच्य की क्रिया में एक से अधिक क्रिया पद होते है । इसमें कर्ता के साथ ‘से’ लगाया जाता है ।
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