वृत्ति और काल


 वृत्ति और काल

वृत्तिः- वृत्ति को ‘क्रियार्थ’ भी कहते है, क्रियार्थ का अर्थ है – क्रिया का अर्थ या प्रयोजन । इसका अर्थ यह है कि ‘क्रिया रुप’ कहने वाले अथवा करने वाले के किस प्रयोजन या वृत्ति की और संकेत करता है ।
क्रियार्थ के प्रकार - हिन्दी में वृत्ति अथवा क्रियार्थ के पांच भेद है – 

१.विध्यर्थ -  जब आप यह कहते है कि आप की बात सुनकर सुनने वाला कुछ क्रिया करे, तब इस क्रियार्थ का प्रयोग होता है  । इसे ‘आज्ञार्थ’ भी कहा जाता है  । 
जैसे - ‘जरा बताइए’ । इसका अर्थ है कि सुनने वाला आपको वह बताए जो आपने पूछा है । 

२.निश्चयार्थक - क्रिया के जिस रुप से कार्य के होने या न होने का अर्थ निश्चित रुप से प्रकट हो, वहाँ ‘निश्चयार्थक’ होता है ।
जैसे – १. मैं लिखता हूँ । २. सहसा बादल बरसने लगे ३. विवेक विद्यालय जाता है ।
विशेष – जहाँ क्रियार्थ के अन्य चार भेद स्पष्ट नही होते, वहाँ निश्चयार्थक प्रकार माना जाता है । 

३.संभावनार्थ - क्रिया के जिस रुप से किसी कार्य के होने की संभावना प्रकट हो, वहाँ ‘संभावनार्थक’ होता है ।
जैसे – १. क्या पता, मेरा मकान तुम्हें पसँद भी आए ।
          २.कदाचित तुम वहाँ नही पहुँच सकोगे । 

४.संकेतार्थ – जिस क्रिया रुप में एक काम का होना दूसरे कार्य पर निर्भर हो, उसे ‘संकेतार्थ’ कहते है 
यहाँ कार्य –कारण एक –दूसरे की ओर संकेत करते है ।
जैसे – वह आता तो उसे भी वरदान मिल जाता । 

५.सन्देहार्थ - क्रिया के जिस रुप से कार्य के होने में संदेह हो ।
जैसे – १.वह मुझे याद करता होगा ।
          २.वह सो रहा होगा ।
          ३.मैं पढ़ा होता, तो अवश्य पास हो गया होता । 

कालः- क्रिया के जिस रुप से उसके होने अथवा करने के समय का बोध हो, उसे काल कहते है  
काल के भेद -   काल के तीन भेद है  
१.वर्तमान काल  
२.भूतकाल
३.भविष्यत
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